Thursday, February 20, 2020

मानवाधिकार की हत्या

आज मानव अधिकार की हत्या हुई है कानून की हत्या हुई है आज दो आदमी के साथ में बड़ा अत्याचार हुआ है और एक को तो मौत भी हो चुकी है यह खींवसर तहसील की खबर है यह आज की खबर है यह दोनों मेघवाल जाति के थे

Tuesday, February 4, 2020

kanehya is the best

दुनियां की प्रतिष्ठित मैग्जीन #फोर्ब्स में भारत के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय(JNU) के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष #डॉ_कन्हैया_कुमार को विश्व के टॉप-20 #निर्णायक लोगों की सूची में 12वां स्थान मिला हैं फोर्ब्स ने #कन्हैया को आगामी दशक का #निर्णायक चेहरा बताया !!

    सड़कों से लेकर #संसद, #थानों से लेकर #तिहाड़ तक #अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों को अपने रंग में लाने वाला, दिखने में मासूम सा चेहरा आज भारत के अनेकों #हस्तियों को #पछाड़ते हुए दुनियां में आगामी दशक की 20 #शक्तिशाली लोगों की सूची में शामिल होने वाला कन्हैया आज उन लोगों के मुंह पर तमाचा मार गया जो किसी की सोची समझी साजिश के तहत उनको #देशद्रोही समझते थे !!
   बहुत-बहुत #बधाई हो #कन्हैया
#kanhaiya_kumar

Sunday, February 2, 2020

संविधान बचाओ

https://youtu.be/y8UPwG-kOoA

भंवर लाल जी नवल की जीवनी

रैगर रतन भंवरलाल जी नवल साहब 

श्री श्री भवंरलाल नवल का जन्‍म फरवरी 1947 में नागौर जिले के ग्राम छोटी खाटू में श्री हजारीमल नवल के घर हुआ । इनकी माता का नाम श्रीमती मनोहर देवी है । श्री हजारीमल के पांच पुत्र एवं तीन पुत्रियों में से श्री भंवरलाल नवल सबसे बड़े पुत्र हैं । श्री हजारीमल की स्थिति कमजोर थी । श्री भवंरलाल नवल ने प्राथमिक एवं सैकण्‍ड्री तक की शिक्षा छोटी खाटू में ही सरकारी स्‍कूल में प्राप्‍त की । सैकण्‍ड्री स्‍कूल पास करने के बाद श्री नवल वर्ष 1964 उच्‍च शिक्षा के लिए जोधपुर गए । एस.एम.के. कॉलेज जोधपुर में दाखिला लिया । इस दौरान श्री भंवरलाल नवल रैगर समाज के श्री ज्ञानगंगा छात्रावास, नागोटी गेट में रहे । छात्रावास संस्‍थापक एवं प्रबन्‍धक स्‍वामी गोपालरामजी महाराज ने आपको भरपूर सहयोग और प्रोत्‍साहन दिया । घर की आर्थिक परिस्थितियाँ तथा पढ़ाई में कमजोर होने की वजह से वर्ष 1965 पढ़ाई छोड़ कर आप वापस अपने गांव छोटी खाटू आ गए । वर्ष 1966 में आपको अध्‍यापक की नौकरी मिल गई । प्राईमरी स्‍कूल ग्राम फरड़ौद जिला नागौर में अध्‍यापक नियुक्‍त हुए । वहाँ लगभग छ: माह नौकरी की । वहाँ से नौकरी छोड़ कर राजस्‍थान राज्‍य क्रय विक्रय संघ, जयपुर में बाबू (Clerk) के पद पर नियुक्‍त हुए । नौकरी के दौरान वे आलनियावास जिला नागौर निवासी श्री धन्‍नाराम कुरड़िया के सम्‍पर्क में आए । श्री धन्‍नाराम कुरड़िया का मुम्‍बई में चमड़े से निर्मित उत्‍पादों का बहुत बड़ा कारोबार था । उनका नाम विदेशी निर्यातकों में था । श्री भंवरलाल नवल सन् 1968 में बाबू की नौकरी छोड़कर मुम्‍बई चले गए और श्री धन्‍नाराम कुरड़िया के वहाँ सेल्‍समेन लग गए । श्री भंवरलाल नवल ने अपनी मेहनत और लगन से अपने आपको एक सफल सेल्‍समेन साबित किया । इस वजह से इन्‍हें निर्यात का कार्य भी सोंप दिया गया । श्री धन्‍नाराम कुरड़िया के वहाँ दो साल नौकरी की । वहाँ से नौकरी छोड़ने के बाद अपना स्‍वयं का इसी लाईन का व्‍यापार मुम्‍बई में शुरू किया । धीरे-धीरे निर्यात के क्षेत्र में प्रवेश किया । सन् 1977 तक अपना धन्‍धा अच्‍छा जमा दिया । सन् 1977 से 1981 तक श्री भंवरलाल नवल व्‍यापार के सम्‍बंध में अमेरिका गए और वहीं रहें । वर्ष 1982-83 में ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन किया जिसे स्‍वीकार कर लिया गया । इससे श्री भंवरलाल नवल को भारत से अमेरिका आने जाने की सुविधा मिल गई । अमेरिका में चमड़े के उत्‍पदों का व्‍यापार करते हुए उनका ध्‍यान दूसरे धन्‍धे की तरफ गया । पुराने मकानों को खरीद कर उसकी मररम्‍मत करके पुर: बेचने के धन्‍धे में रूचि ली । इसमें उन्‍हें अच्‍छा लाभ मिला । आज श्री भवंरलाल नवल की रैगर समाज में प्रतिष्‍ठा शीर्ष पर है । अमेरिका में भी बड़े व्‍यापारियों की सूची में उनका नाम जुड़ गया है । वे आज कई करोड़ों के मालिक है ।
       हजारीमल मनोहरीदेवी चेरिटेबल ट्रस्‍ट- वर्ष 1994 में श्री भंवरलाल नवल ने एक ट्रस्‍ट बनाया जिसका नाम 'हजारीमल मनोहरीदेवी चेरिटेबल ट्रस्‍ट' रखा । ग्‍यारह सदस्‍यों के बोर्ड में श्री भंवरलाल नवल की माता श्रीमती मनोहरीदेवी अध्‍यक्ष है और ट्रस्‍ट का सारा कार्य श्री भंवरलाल नवल स्‍वयं देखते हैं । शेष सदस्‍यों की नियुक्ति अध्‍यक्ष द्वारा की जाती है । इस ट्रस्‍ट का उद्देश्‍य है समाज सुधार के कार्यों को प्रोत्‍साहन देना तथा शिक्षा को बढ़ावा देना । श्री नवल ने ज्‍यादातर धन सामूहिक विवाह तथा शिक्षा पर व्‍यय किया । सामूहिक विवाह का आयोजन 21 फरवरी, 2000 में दिल्‍ली में 21 जोड़ों से शुरू किया । इस आयोजन में दिल्‍ली की मुख्‍यमंत्री शीला दीक्षित, श्री सुरेन्‍द्रपाल रातावाल, मीरां कंवरिया तथा मोतीलाल बाकोलिया सम्मिलित हुए । दिल्‍ली निवासी श्री ज्ञानचन्‍द्र खटनावलिया ने व्‍यवस्‍था की कमान संभाली थी । इसके पश्‍चात् 7 नवम्‍बर, 2000 को नागौर में 56 जोड़ों का सामूहिक विवाह सम्‍पन्‍न करवाया । इसमें मुख्‍यमंत्री राजस्‍थान श्री अशोक गहलोत, श्री छोगाराम बाकोलिया मंत्री राजस्‍थान सरकार तथा स्‍वामी गोपालरामजी महाराज प्रमुख रूप से शरीक हुए । 29 जनवरी, 2001 को मुम्‍बई में 20 जोड़ों का सामूहिक विवाह सम्‍पन्‍न करवाया । 27 फरवरी, 2002 को जोधपुर (राज.) में 65 जोड़ों का सामूहिक विवाह ट्रस्‍ट द्वारा सफलतापूर्वक सम्‍पन्‍न करवाया गया । इसमें मुख्‍य अतिथि श्री धर्मदास शास्‍त्री पूर्व सांसद थे । 17 फरवरी, 2002 को छोटी खाटू जिला नागौर में 27 जोड़ों का सामूहिक विवाह का ट्रस्‍ट द्वारा आयोजन किया गया । इसमें श्री छोगाराम बाकोलिया मंत्री राजस्‍थान सरकार मुख्‍य अतिथि थे । वर्ष 1994 में हजारीमल मनोहरदेवी चेरिटेबल ट्रस्‍ट ने गरीब और जरूरतमंद लोगों के नि:शुल्‍क इलाज के लिए ठक्‍करबापा कॉलोनी, मुम्‍बई में चिकित्‍सालय की स्‍थापना की । यह चिकित्‍सालय वर्ष 1994 से नि नवल का जन्‍म फरवरी 1947 में नागौर जिले के ग्राम छोटी खाटू में श्री हजारीमल नवल (खटनावलिया) के घर हुआ । इनकी माता का नाम श्रीमती मनोहर देवी है । श्री हजारीमल के पांच पुत्र एवं तीन पुत्रियों में से श्री भंवरलाल नवल सबसे बड़े पुत्र हैं । श्री हजारीमल की स्थिति कमजोर थी । श्री भवंरलाल नवल ने प्राथमिक एवं सैकण्‍ड्री तक की शिक्षा छोटी खाटू में ही सरकारी स्‍कूल में प्राप्‍त की । सैकण्‍ड्री स्‍कूल पास करने के बाद श्री नवल वर्ष 1964 उच्‍च शिक्षा के लिए जोधपुर गए । एस.एम.के. कॉलेज जोधपुर में दाखिला लिया । इस दौरान श्री भंवरलाल नवल रैगर समाज के श्री ज्ञानगंगा छात्रावास, नागोटी गेट में रहे । छात्रावास संस्‍थापक एवं प्रबन्‍धक स्‍वामी गोपालरामजी महाराज ने आपको भरपूर सहयोग और प्रोत्‍साहन दिया । घर की आर्थिक परिस्थितियाँ तथा पढ़ाई में कमजोर होने की वजह से वर्ष 1965 पढ़ाई छोड़ कर आप वापस अपने गांव छोटी खाटू आ गए । वर्ष 1966 में आपको अध्‍यापक की नौकरी मिल गई । प्राईमरी स्‍कूल ग्राम फरड़ौद जिला नागौर में अध्‍यापक नियुक्‍त हुए । वहाँ लगभग छ: माह नौकरी की । वहाँ से नौकरी छोड़ कर राजस्‍थान राज्‍य क्रय विक्रय संघ, जयपुर में बाबू (Clerk) के पद पर नियुक्‍त हुए । नौकरी के दौरान वे आलनियावास जिला नागौर निवासी श्री धन्‍नाराम कुरड़िया के सम्‍पर्क में आए । श्री धन्‍नाराम कुरड़िया का मुम्‍बई में चमड़े से निर्मित उत्‍पादों का बहुत बड़ा कारोबार था । उनका नाम विदेशी निर्यातकों में था । श्री भंवरलाल नवल सन् 1968 में बाबू की नौकरी छोड़कर मुम्‍बई चले गए और श्री धन्‍नाराम कुरड़िया के वहाँ सेल्‍समेन लग गए । श्री भंवरलाल नवल ने अपनी मेहनत और लगन से अपने आपको एक सफल सेल्‍समेन साबित किया । इस वजह से इन्‍हें निर्यात का कार्य भी सोंप दिया गया । श्री धन्‍नाराम कुरड़िया के वहाँ दो साल नौकरी की । वहाँ से नौकरी छोड़ने के बाद अपना स्‍वयं का इसी लाईन का व्‍यापार मुम्‍बई में शुरू किया । धीरे-धीरे निर्यात के क्षेत्र में प्रवेश किया । सन् 1977 तक अपना धन्‍धा अच्‍छा जमा दिया । सन् 1977 से 1981 तक श्री भंवरलाल नवल व्‍यापार के सम्‍बंध में अमेरिका गए और वहीं रहें । वर्ष 1982-83 में ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन किया जिसे स्‍वीकार कर लिया गया । इससे श्री भंवरलाल नवल को भारत से अमेरिका आने जाने की सुविधा मिल गई । अमेरिका में चमड़े के उत्‍पदों का व्‍यापार करते हुए उनका ध्‍यान दूसरे धन्‍धे की तरफ गया । पुराने मकानों को खरीद कर उसकी मररम्‍मत करके पुर: बेचने के धन्‍धे में रूचि ली । इसमें उन्‍हें अच्‍छा लाभ मिला । आज श्री भवंरलाल नवल की रैगर समाज में प्रतिष्‍ठा शीर्ष पर है । अमेरिका में भी बड़े व्‍यापारियों की सूची में उनका नाम जुड़ गया है । वे आज कई करोड़ों के मालिक है ।
       हजारीमल मनोहरीदेवी चेरिटेबल ट्रस्‍ट- वर्ष 1994 में श्री भंवरलाल नवल ने एक ट्रस्‍ट बनाया जिसका नाम 'हजारीमल मनोहरीदेवी चेरिटेबल ट्रस्‍ट' रखा । ग्‍यारह सदस्‍यों के बोर्ड में श्री भंवरलाल नवल की माता श्रीमती मनोहरीदेवी अध्‍यक्ष है और ट्रस्‍ट का सारा कार्य श्री भंवरलाल नवल स्‍वयं देखते हैं । शेष सदस्‍यों की नियुक्ति अध्‍यक्ष द्वारा की जाती है । इस ट्रस्‍ट का उद्देश्‍य है समाज सुधार के कार्यों को प्रोत्‍साहन देना तथा शिक्षा को बढ़ावा देना । श्री नवल ने ज्‍यादातर धन सामूहिक विवाह तथा शिक्षा पर व्‍यय किया । सामूहिक विवाह का आयोजन 21 फरवरी, 2000 में दिल्‍ली में 21 जोड़ों से शुरू किया । इस आयोजन में दिल्‍ली की मुख्‍यमंत्री शीला दीक्षित, श्री सुरेन्‍द्रपाल रातावाल, मीरां कंवरिया तथा मोतीलाल बाकोलिया सम्मिलित हुए । दिल्‍ली निवासी श्री ज्ञानचन्‍द्र खटनावलिया ने व्‍यवस्‍था की कमान संभाली थी । इसके पश्‍चात् 7 नवम्‍बर, 2000 को नागौर में 56 जोड़ों का सामूहिक विवाह सम्‍पन्‍न करवाया । इसमें मुख्‍यमंत्री राजस्‍थान श्री अशोक गहलोत, श्री छोगाराम बाकोलिया मंत्री राजस्‍थान सरकार तथा स्‍वामी गोपालरामजी महाराज प्रमुख रूप से शरीक हुए । 29 जनवरी, 2001 को मुम्‍बई में 20 जोड़ों का सामूहिक विवाह सम्‍पन्‍न करवाया । 27 फरवरी, 2002 को जोधपुर (राज.) में 65 जोड़ों का सामूहिक विवाह ट्रस्‍ट द्वारा सफलतापूर्वक सम्‍पन्‍न करवाया गया । इसमें मुख्‍य अतिथि श्री धर्मदास शास्‍त्री पूर्व सांसद थे । 17 फरवरी, 2002 को छोटी खाटू जिला नागौर में 27 जोड़ों का सामूहिक विवाह का ट्रस्‍ट द्वारा आयोजन किया गया । इसमें श्री छोगाराम बाकोलिया मंत्री राजस्‍थान सरकार मुख्‍य अतिथि थे । वर्ष 1994 में हजारीमल मनोहरदेवी चेरिटेबल ट्रस्‍ट ने गरीब और जरूरतमंद लोगों के नि:शुल्‍क इलाज के लिए ठक्‍करबापा कॉलोनी, मुम्‍बई में चिकित्‍सालय की स्‍थापना की । यह चिकित्‍सालय वर्ष 1994 से नि

bahujan hiteshi ramji sakpal

बहुजन एवं बहुजन हितै

डॉ.अंबेडकर का पूर्वज गांव अंबावडे है, महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के एक छोटे से शहर Mandanged से पांच मील दूर है। डॉ.अम्बेडकर के दादाजी मालोजी सकपाल ईस्ट इंडिया कंपनी की बॉम्बे सेना में हवलदार थे। कहा जाता है कि युद्ध के मैदान में बहादुरी के कृत्यों के लिए उन्हें कुछ जमीन आवंटित की गई थी। मालोजी सकपाल के दो बच्चे थे - रामजी मालोजी सकपाल (पुत्र) और मीरा बाई (बेटी)।

अपने पिता की तरह, रामजी भी सेना में शामिल हो गए। वह एक प्रबुद्ध व्यक्ति थे जिन्होंने कठोर परिश्रम किया और अंग्रेजी भाषा में दक्षता प्राप्त की। पूना में सेना सामान्य स्कूल से शिक्षण में डिप्लोमा प्राप्त किया। नतीजतन आर्मी स्कूल में शिक्षक के रूप में नियुक्त मिली, हेड मास्टर के रूप में कार्य किया और सुबेदार मेजर का पद प्राप्त किया। रामजी अस्पृश्य (महार) व कबीर पंथ से संबंधित थे।

रामजी सकपाल के 14 बच्चे थे, 14 वें भिमराव (डॉ.अम्बेडकर) थे। हालांकि केवल तीन बेटे - बलराम, आनंदराव और भीमराव - और दो बेटियां - मंजुला और तुलसा ही बच पायी। महाराष्ट्र में भक्ति आंदोलन ने रामजी सकपाल के परिवार को प्रभावित किया था, रामजी सकपाल ने अपने बच्चों को सख्त धार्मिक माहौल में पाला था। इस प्रकार, बचपन के दौरान भीमराव भक्ति गीत गाते थे। रामजी सकपाल का दृष्टिकोण अपने बच्चों के विकास के प्रति जिम्मेदारी भरा था। वे बच्चों के विकास में दिलचस्पी रखते थे।

रामजी 1894 में सेवानिवृत्त हुए और दो साल बाद दापोली से सतारा चले गए। कुछ समय बाद भीमराव की मां (भीमा बाई) की मृत्यु हो गई। रामजी सकपाल दूसरा विवाह कर लिया। रामजी सकपाल ने भीमराव की महत्वाकांक्षा को उसकी शिक्षा की दिशा में कम नहीं किया। रामजी सकपाल अपने बच्चों के सुधार और विशेष रूप से भीमराव की बौद्धिक आकांक्षाओं के प्रति दृढ़ और प्रतिबद्ध थे।

1904 में बॉम्बे प्रवास के दौरान परेल में किराए के कमरे पर, रामजी सकपाल ने डॉ अम्बेडकर की विशेष रूप से अत्यधिक देखभाल की। वे अपने बेटे से जल्दी बिस्तर पर जाने के लिए कहते थे और खुद 2 बजे तक काम करते और अध्ययन के लिए अपने बेटे को जागृत करने के बाद बिस्तर पर जाते। अपने पिता के मार्गदर्शन में भीमराव ने अनुवाद कार्य में अनुभव प्राप्त किया। भीमराव का अंग्रेजी भाषा का ज्ञान उनकी कक्षा के साथी की तुलना में अच्छा था, जो भाषा में उनके पिता की रुचि को सौजन्य देता था। भीमराव की किताबों की इच्छा अत्यधिक थी जिसे उनके महान पिता द्वारा समर्थित किया गया था। सकपाल जी ने अविस्मरणीय रूप से भीमराव को नई किताबों की पूर्ति की, अक्सर अपनी दो विवाहित बेटियों से धन उधार लेते हुए भी, अपने गहने को गिरवी रखते हुए, जो उन्हें शादी के उपहार के रूप में मिले थे, जिन्हें मासिक पेंशन प्राप्त करने के बाद उन्हें छुड़ा लेते थे, जो कि मात्र पचास रुपये होती थी।

भीमराव बड़ौदा नरेश सयाजीराव गायकवाड़ से केलुस्कर जी (भीमराव के शिक्षक) के माध्यम से प्रति माह पच्चीस रुपये की छात्रवृत्ति प्राप्त करने में सफल हुए थे। महाराजा ने एक साक्षात्कार में भीमराव के बारे में खुद को संतुष्ट करने के बाद इस राशि को मंजूरी दी थी। भीमराव ने 1912 में बीए उत्तीर्ण करने के बाद, जनवरी 1913 में बड़ौदा राज्य की सेवा में बड़ौदा राज्य सैन्यबल में लेफ्टिनेंट के रूप में सेवा में प्रवेश किया। डॉ अम्बेडकर को एक टेलीग्राम मिला जिसमें उन्हें सूचित किया गया कि उनके पिता बॉम्बे में गंभीर रूप से बीमार थे। उन्होंने तुरंत अपने पिता के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए बड़ौदा छोड़ा। घर जाने के बाद वह सूरत स्टेशन पर अपने पिता के लिए मीठा खरीदने के लिए उतर गये और ट्रेन चूक गए। अगले दिन जब वह बॉम्बे पहुंचे तो उनके पिता की आंखें केवल अपने प्रिय बेटे को खोज रही थी जिन पर उन्होंने अपने विचारों, आशाओं और अस्तित्व को न्योछावर किया था। उसने अपने कमजोर हाथ अपने बेटे की पीठ पर रखे और अगले पल उनकी आंखें बंद हो गईं। भीमराव के दुख का विस्फोट इतना बड़ा था कि सांत्वना के शब्द उसके दिल को शांत करने में नाकाम रहे और उसके बड़े विलाप ने परिवार के सदस्यों को शोक की लहरों को डूबा दिया। यह 02 फरवरी 1913 था, भीमराव अम्बेडकर के जीवन में सबसे दुखद दिन।

इस प्रकार एक अस्पृश्य, सुबेदार मेजर रामजी मालोजी सकपाल का निधन हो गया, जो अपने जीवन के अंत तक मेहनती, कठोर, भक्तिपूर्ण और महत्वाकांक्षी थे। वह उम्र में परिपक्व, लेकिन धन में गरीब, कर्ज के कारण; लेकिन चरित्र में अनुकरणीय। अपने बेटे में संसार भर की बुराइयों और दुखों से लड़ने की ताकत देकर, जीवन की लड़ाई लड़ने के लिए पीछे छोड़ गए ।

भिमराव के जन्म से बीए डिग्री पूरी करने तक रामजी सकपाल एक प्रेरणादायक परी के रूप में खड़े थे। वे रामजी सकपाल ही थे जिन्होंने भिमराव के दिमाग और व्यक्तित्व को आकार दिया। रामजी सकपाल, भिमराव के धैर्य, भक्ति और समर्पण के मूर्तिकार थे। रामजी सकपाल द्वारा दिखाई गई राह ने भीमराव को विदेशों में शिक्षा प्राप्त करने में मदद की और उन विचारों को विकसित करने में जो उन्हें पीड़ितों के मसीहा बनाने के लिए आवश्यक थे। डॉ अम्बेडकर ने अपने पिता और मां को, उनके अतुलनीय त्याग की याद में और उनके शिक्षा के मामले में दिखाए गई जागृति के प्रति कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में अपनी पुस्तक, 'द प्रॉब्लम ऑफ द रुपी' समर्पित की।

आज के दिन : 2 फरवरी

1-2.2.11?? वीर मेघमाया जयंती
2-2.2.1922 बाबू जगदेव प्रसाद जन्म दिवस
3-2.2.1950 मुकुंदराव आंबेडकर परिनिर्वाण दिवस
4-2.2.1935 मधुकर पिपलायन जन्मदिन
5-2.2.1913 रामजी मालोजी सकपाल स्मृति दिवस

Saturday, February 1, 2020

शाहीन बाग में 48 घंटा बाद फिर गोलीबारीमें दूसरी बार गोलीबारी

साइन बाग में 48 घंटे बाद फिर गोली कपिल गुर्जर ने चलाई गोली उसने कहा यह देश हिंदुओं का है साथियों पुलिस ने आर एक्ट 307 धारा के तहत मुकदमा दर्ज करके आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है और पुलिस जांच कर रही है साथ ही दिल्ली में जामिया में गोली चली थी जिसमें पुलिस आयुक्त प्रवीन रंजन एम्स में भर्ती शाबाद से मिलने गए